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सर फक्र से उठ जाता है....!! Hindi Indipendent day poem

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  सर फक्र से उठ जाता है, जब जब तिरंगा लहराता है.......! इस देश के वीर शहीदों की, यह तिरंगा याद दिलाता है.........! अपनी मातृभूमि कि खातिर, जिन्होंने तन-मन अपने वारे हैं.........! ऐसे वीर जवानों के किस्से, हर बुजुर्ग बच्चों को सुनाता है..........! लालकिले पर राष्ट्रध्वज, प्रधानमंत्री जब फरकाते है...........! हिंद कि सेना तब अपना शौर्य, पूरी दुनिया को दिखलाता है............! जय हिंद और वंदेमातरम् का नारा, हर देशवासी लगाता हैं..........! १५ अगस्त का दिन भारत देश, एक पर्व के तौर पर मनाता है.............!! स्वतंत्रता दिवस कि शुभकामनाएं आप सभी को वंदेमातरम् 🙏 प्रविन.................✍️ sar phakr se uth jaata hai, jab jab tiranga laharaata hai.......! is desh ke veer shaheedon kee, yah tiranga yaad dilaata hai.........! apanee maatrbhoomi ki khaatir, jinhonne tan-man apane vaare hain.........! aise veer javaanon ke kisse, har bujurg bachchon ko sunaata hai..........! laalakile par raashtradhvaj, pradhaanamantree jab pharakaate hai...........! hind ki sena tab apana shaury, pooree duniya k...

देख पिता की शहादत.....!!!! Hindi desh bhakti poem

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देख पिता की शहादत, ख़ून मेरा खौल उठा है... आंखों में है आंसू और, सीने में शोला भड़क उठा है... सर पे पिता का रहा ना साया, उसका मुझे कोई ग़म नहीं... मेरी जुबां पर आज भी, ज़य हिंदी का ही नारा है... शेरों को धोखे से मारा, जिन पाकिस्तानी कुत्तों ने... उन्हें मिटाने के लिए, मुझे फौज में भर्ती होना है...!! जय हिन्द ✊

तब बर्दाश्त नहीं होता.......!!! Hindi desh bhakti poem

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तब बर्दाश्त नहीं होता....... जब बात करता पाक अमन की, और आतंक को जन्म देता है....! बढ़ा कर दोस्ती का हाथ, फिर पीठ में छुरा घोंपता है....! तब बर्दाश्त नहीं होता....... जब देश के जवानों पर, धोखे से वार होता है....! इस देश में रहने वाला ही, जवानों पे पत्थर फेंकता है....! तब बर्दाश्त नहीं होता........ जब शहिदों की शहादत पर, कोई राजनीति करता है....! दुश्मनों की आलोचना के बदले, उनकी ही हिमाकत करता है....! तब बर्दाश्त नहीं होता......... जो खाता तो है हिन्दुस्तान की, और गुणगान पाकिस्तान के गाता है....! वंदे मातरम् की जगह, पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाता है....! तब बर्दाश्त नहीं होता......... कब बदलेगी भारत की सूरत...? कब होगी सुख-शांति और समृद्धि का आगमन...? वंदे मातरम् 🙏 प्रभात..........

घर आए जब खून से लथपथ भारत देश के वीर जवान... Hindi desh bhakti poem

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टूट गई हाथों की चूड़ी, उजड़ गया माथे का सिन्दूर... घर आए जब खून से लथपथ, भारत देश के वीर जवान... रोते बिलखते बच्चे पुछे, पापा मेरे कहां गए...? कैसे बताएं उन मासूमों को, अब पापा उनके नहीं रहे... घर का था वो एक सहारा, बुढ़े मां-बाप की आंखों का तारा... रोशन था जिस बेटे से घर, वो चिराग ही अब बुझ गया... पुलवामा के शहिदों की शहादत, हमसे यह कह रही... जली है जो सीने में आग, इसे हमेशा जलाए रखना... आज मर-मिटे है हम इस वतन पर, और भी मिटने को तैयार हैं... डाली जो बुरी नजर इस देश पर, उसका करना हमें बुरा हाल है... सलाम है मेरे भारत के वीर शहिदों को✊ वंदे मातरम् 🙏 प्रभात............

बर्दाश्त की अब हद हो गई....!!! Hindi desh bhakti poem

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बर्दाश्त की अब हद हो गई, माफी की अब नहीं गुंजाइश है.... पाकिस्तान तुझे तो अब, तेरी औकात हमें दिखानी है.... बहाया जो लहू जवानों का तुने, उसकी भारी किमत तुझे चुकानी है.... मिटा कर तेरा नामोनिशान, आतंक को हमें सबक सिखानी है.... दिवालिया हो गई है तेरी हालत, अब भूखमरी की भी तैयारी है.... आतंकवाद को बढ़ावा देकर, तुने अपनी शामत बुलाली है.... ख़ून खौल उठा है भारत का, तुझे धुल तो अब हमें चटानी है.... भूल गया है तू शायद हिन्दुस्तान की ताकत, अब तुझे हमें अपनी ताकत दिखानी है.... पिठ पर वार करना आदत नहीं हमारी, तेरे सीने में तलवार उतारनी है.... बर्दाश्त की अब हद हो गई, माफी की अब नहीं गुंजाइश है.... पाकिस्तान तुझे तो अब, तेरी औकात हमें दिखानी है....!!! वंदे मातरम् 🙏 जय हिन्द ✊जय भारत मेरे देश के सभी शहिद जवानों को इस कविता के माध्यम से श्रद्धांजली अर्पित करता हूं प्रभात........

मंदिर, मस्जिद की पुकार.....!!! Hindi Desh bhakti poem

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मंदिर, मस्जिद की पुकार, अब कहां लोगों को सुनाई देती है..... भेड़ बन गई है आज सारी आवाम, जो सही ग़लत नहीं समझ पाती है..... कभी मिसाल थी दोस्ती इनकी, पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान की...... रहते थे जो मंदिर मस्जिद में, राम रहीम जिनके नाम थे..... होती थी जब मगरिब की अज़ान, उसकी आवाज़ें घर तक आती थी.... पंडित के घर में औरतें भी, तभी दिया जलाती थी..... कभी पंडित के लोटे से, मुसलमा वजू बनाया करते थे..... सुख दु:ख हो या शादी, मैयत, सब में साथ निभाया करते थे..... जाती धर्म का कोई भेद नहीं था, सब एक रिश्ते में आते थे..... अब मंदिर की दीवारें हैं, और मस्जिद की बस मिनारें हैं..... खत्म हो गया वो प्यार मोहब्बत, अब सबके हाथों में तलवारें है..... बांट दिया इस मुल्क को धर्म जात में, सियासत के हुक्मरानों ने...... आज दुश्मन बन बैठे हिन्दू, मुसलमान, जो कभी एकता के दोनों प्रतिक थे.....!!! प्रभात.........

वतन-ए-हिंदुस्तान यही मेरी पहचान है. . . . .!!! ‌‌‌‌‌‌Desh bhakti poem

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ना धर्म ना ही कोई मेरी जात है, वतन-ए-हिंदुस्तान यही मेरी पहचान है. . . . .! यूँ ही नहीं लहराता तिरंगा आज बड़ी शान से, मर मिटे हैं जो वतन पे उनकी शहादत मुझे याद है. . . . .! क्या छोटा क्या बडा ये मुझ में कोई भेद नहीं, मेरे लिए तो सब एक जैसी मेरी ही संतान है. . . . . ! खड़ा है हिमालय जहां बर्फ की चादर ओढे,  कश्मीर तो यहां जैसे जन्नत का एहसास है. . . . . ! पूजी जाती पावन नदियां जहां देवी के नाम से, ईश्वर ने जहां जन्म लिया उनके हैं चारो धाम यहां . . . . ! मंदिरो मे जब शंख बजे और मस्जिद गुंजे अजान से,  सुबह भी पावन हो जाती यहां हर दिलो के भक्ति भाव से . . ..! ईद, दिवाली, और बैसाखी हर त्योहारो पे मचती धूम यहां, मिल के मनाते हर उत्सव को ऐसी एकता की मिसाल कहां . . . .! रित रिवाज और भाषा से यूँ तो है सब जुदा जुदा, मिलजुल के जहां रहते सभी ऐसा हिंदुस्तान और कहां . . . .! गणतंत्र और स्वातंत्र दिन पे जब निकले परेड जवानो की, दुश्मन भी थर थर कांपने लगते ऐसे देश वीर जवान यहां. . . . .! यही दुआ है अहले वतन की सब यूँ ही एक साथ रहो, जीतो दिलों को प्यार से और वतन का ऊं...

मैं अपने वतन की खातिर, अपना घर-बार छोड़ आया हूँ.....!! Hindi Desh bhakti poem

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एक सैनिक मन की बात.... किसी गजरे की खुशबु को, महकता छोड़ आया हूँ,  मेरी नन्ही सी चिड़िया को, चहकता छोड़ आया हूँ,  जिसने कांधे पर मुझे बिठाया, उस पिता को भी छोड़ आया हूँ,  मुझे छाती से अपनी तू, लगा लेना ऐ भारत माँ,  मैं अपनी माँ की बाहों को, तरसता छोड़ आया हूँ, मैं अपने वतन की खातिर, अपना घर-बार छोड़ आया हूँ,  वंदे मातरम् 🙏 जय मां भारती 🙏 प्रभात..........

देश के दुश्मनों से दोस्ती की अब न कोई फरियाद हो.....!!! Hindi. Desh bhakti poem

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नफरतों के नासूरों का, कुछ तो अब इलाज हो... देश के दुश्मनों से दोस्ती की, अब न कोई फरियाद हो... सुनी कोख, उजड़ी मांग पर, अब ये सियासतें ‌बंद हो... शहादत में मिले जख्मों का, अब तो‌ कोई हिसाब हो... हैवानों से आखिर कब तक, अहिंसा से हमारी ‌बात हो... ढाई आखर जो न समझे, उससे क्या प्रेम का पाठ हो... कब तक सहें देश मेरा, अब तो भयंकर ललकार हो... मुठ्ठी भर ईंटों को तो, अब तो पत्थरों का जवाब है... छुप कर वार जो करते हैं, अब सामने से उनपर प्रहार हो...!!! वंदे मातरम् 🙏 प्रभात...........