वतन-ए-हिंदुस्तान........ Hindi Desh Bhakti poem
ना धर्म ना ही कोई मेरी जात है, वतन-ए-हिंदुस्तान यही मेरी पहचान है. . . . .! यूँ ही नहीं लहराता तिरंगा, आज बड़ी शान से; मर मिटे हैं जो वतन पे, उनकी शहादत मुझे याद है. . . . .! क्या छोटा क्या बडा, ये मुझ में कोई भेद नहीं; मेरे लिए तो सब एक जैसी, मेरी ही संतान है. . . . . ! खड़ा है हिमालय जहां, बर्फ की चादर ओढे; कश्मीर तो यहां जैसे, जन्नत का एहसास है. . . . . ! पूजी जाती पावन नदियां, जहां देवी के नाम से; ईश्वर ने जहां जन्म लिया, उनके यहां चारो धाम है . . . . ! मंदिरो मे जब शंख बजे, और मस्जिद गुंजे अजान से; सुबह भी पावन हो जाती यहां, हर दिलो के भक्ति भाव से . . ..! ईद, दिवाली, और बैसाखी, हर त्योहारो पे मचती धूम यहां; मिल के मनाते हर उत्सव को; ऐसी एकता की मिसाल कहां . . . .! रित रिवाज और भाषा से, यूँ तो है सब जुदा जुदा; मिलजुल के जहां रहते सभी, ऐसा हिंदुस्तान और कहां . . . .! गणतंत्र और स्वातंत्र दिन पे, जब निकले परेड जवानो की; दुश्मन भी थर थर कांपने लगते, ऐसे देश वीर जवान यहां. . . . .! यही दुआ है अहले वतन की, सब यूँ ही एक साथ रहो; जीतो दिलों को