सुकून-ए-जिंदगी...... Motivation poem......
सुकून-ए-जिंदगी कहां किसी को मिल पाती हैं...! ख्वाहिशों को पुरा करते करते उम्र बित जाती है...! निकल पड़ते हैं रोज घर से उम्मीदों का हाथ थामें, पर रेत की तरह मुठ्ठी से उम्मीद भी फिसल जाती है...! हंसती रहती है मजबूरीयां हालात को देख के, जरूरत की खातिर तो ईज्जत भी बिक जाती है...! तरसते रहते हैं नींद को मखमली बिस्तर पे सोने वाले, बेहतर कल की आस में थक के कई गरीब सो जाते हैं...!! प्रभात...........