बिना माँ और पा के क्या है सब कुछ.....!!! Hindi Being human poem

आँखे खोली बिछड़ा सब कुछ बिना माँ और पा के क्या है सब कुछ दुनियाँ का गन्दा नाला पीता रहा बड़ा हुआ कैसे ये मुझे ना याद रहा सीखा ना कुछ भी ना शिक्षा मिली रोज मुझे नीत नवी मंजिल मिली उदर पीड़ा ने क्या क्या सिखाया मेहनत ने तो मुझे कई बार भूखा सुलाया फिर भी कांटो पे चलता था रोज पानी सा रास्ता बना के चलता था बेकाबू सा मन था मेरा काबू ना कर पाता था एक तो उदर पीड़ा दूसरा समाज सताता था मै गरीब सही मेरा ईमान गरीब नही है मै भूखा नंगा सही पर मेरे ख़्वाब नग्न नही है चल रहा हूँ उस रास्ते पे चलता रहूँगा हमेशा चाहे भूख से मर जाऊं पर अपना ईमान ना बेचूंगा प्रभात.........