बिक रहा है यहां सबकुछ......!!! Hindi suvichar
बिक रहा है पानी, डर है कहीं पवन न बिक जाए.....! बिक गई है धरती, डर है कहीं गगन न बिक जाए......! चांद पर भी बिकने लगी है ज़मीं, डर है कहीं सूरज की तपन न बिक जाए......! हर तरह बिकने लगा है लोगों का ईमान, डर है कहीं धर्म न बिक जाए......! देकर दहेज यहां खरीदे जाते दुल्हे, कहीं उनके ही हाथों दुल्हन न बिक जाए.....! रिश्र्वत के बाजार में आज बिकता है हर अधिकारि, डर है कहीं लोगों का अधिकार न बिक जाए.....! सरेआम अब तो बिकने लगे हैं नेता, डर है कहीं इनके हाथों ये वतन न बिक जाए.....! मर कर भी अब खुली रह जाती है इंसान की आंखें, डर है कहीं मुर्दों का कफ़न न बिक जाए.....!! प्रविन..........✍ Bik Raha Hai Pani, Dar Hai kahin Pawan na bik jaaye...... Bik gayi Hai dharti, Dar Hai kahin gagan na bik jaaye....... Chand per bhi bikane lagi Hai jameen, Dar Hai kahin Suraj ki, tapan na bik jaaye....... Har taraf bikne laga hai logo ka imaan, D