आज घुट के इंसान यहां जीते हैं.....!!! Hindi social poem
सुबह घर से निकले तो,
शाम को घर आते हैं.....!
घर की खुशीयों के लिए,
इंसान क्या कुछ नहीं करते है......!
बढ़ती इस मंहगाई की दौर में,
बस मिडिल क्लास ही पिसते है.....!
कैसे बच्चों का भविष्य बनाएं,
स्कूल काॅलेज भी कहां सस्ते हैं......!
जैसे तैसे महिना पूरा करते,
फिर पहली तारीख पे डरते हैं......!
अपनी ख्वाहिशों का गला घोंट,
आज घुट के इंसान यहां जीते है.....!!
प्रविन........
शाम को घर आते हैं.....!
घर की खुशीयों के लिए,
इंसान क्या कुछ नहीं करते है......!
बढ़ती इस मंहगाई की दौर में,
बस मिडिल क्लास ही पिसते है.....!
कैसे बच्चों का भविष्य बनाएं,
स्कूल काॅलेज भी कहां सस्ते हैं......!
जैसे तैसे महिना पूरा करते,
फिर पहली तारीख पे डरते हैं......!
अपनी ख्वाहिशों का गला घोंट,
आज घुट के इंसान यहां जीते है.....!!
प्रविन........
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