सूरज हूं वक्त आने पर निकल जाता हूं.....!!! Hindi suvichar

मैं कभी बुझता नहीं, बस ढल जाता हूं।
सूरज हूं वक्त आने पर निकल जाता हूं।

मैं भी तो सामिल हूं दुनिया की दौड़ में,
कभी गिरता हूं, कभी संभल जाता हूं।

थोड़ा फटा थोड़ा पुराना नोट हूं लेकिन,
जितनी किमत है, उतने में चल जाता हूं।

अपनों का साथ बना रहे यही सोचकर,
रिश्तों के खारे समंदर में गल जाता हूं।

रोज बाहर आने की कोशिश करता है,
रोज ही उस शख्स को निगल जाता हूं।

मेरा तन और किस्मत काली है लेकिन,
इन उजालों की खातिर मैं जल जाता हूं।

तनहा मेरी सूरत हर तरफ नजर आएगी,
कभी मिट्टी कभी रोटी में बदल जाता हूं।

प्रभात...........

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