ग़रीबी में गुजरता बचपन......!!! Hindi social poem
सुबह स्कूल के बस्ते की जगह ।
कांधे पर बोरा उठा लिया करता हूं ।।
बच्चें ढूंढते जहां किताबो में अपना भविष्य ।
वहीं मैं कूड़े में अपना नसीब खोज लिया करता हूं ।।
बेशक तन पे लिबास है मेरे मैला ।
पर मन अपना मैं बेदाग लिए फिरता हूं ।।
क्यूं खटकती है उन लोगों को मेरी शख्सियत ।
जिनके आंगन से मैं कूड़ा साफ कर दिया करता हूं ।।
फिर भी दुत्कार देते हैं मुझे गाली देकर जो।
उन्हें भी मैं मुस्कुरा कर टाल दिया करता हूं।।
कमा लेता हूं मेहनत से दो वक्त की रोटी मैं।
अपनी खुद्दारी को अपनी ढाल बना लिया करता हूं।।
हां गरीबी में गुजर रहा है आज बचपन मेरा ।
पर अपने हौसलो की मैं ऊंची उड़ान रखता हूं.....!!!
प्रभात..........
कांधे पर बोरा उठा लिया करता हूं ।।
बच्चें ढूंढते जहां किताबो में अपना भविष्य ।
वहीं मैं कूड़े में अपना नसीब खोज लिया करता हूं ।।
बेशक तन पे लिबास है मेरे मैला ।
पर मन अपना मैं बेदाग लिए फिरता हूं ।।
क्यूं खटकती है उन लोगों को मेरी शख्सियत ।
जिनके आंगन से मैं कूड़ा साफ कर दिया करता हूं ।।
फिर भी दुत्कार देते हैं मुझे गाली देकर जो।
उन्हें भी मैं मुस्कुरा कर टाल दिया करता हूं।।
कमा लेता हूं मेहनत से दो वक्त की रोटी मैं।
अपनी खुद्दारी को अपनी ढाल बना लिया करता हूं।।
हां गरीबी में गुजर रहा है आज बचपन मेरा ।
पर अपने हौसलो की मैं ऊंची उड़ान रखता हूं.....!!!
प्रभात..........
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