कुछ ऐसी भी औरतें हैं, Hindi women's day poem
चेहरे पर मुस्कान माथे पर,
पसीना झलकता है........
कुछ ऐसी भी औरतें हैं,
जिन्हें आराम नहीं मिलता है........
सुबह होती है इनकी,
बिना आलाम के ही.........
चूल्हे चौके से दिन की,
शुरुआत इनकी होती है.........
ना ही कोई सिंगार,
ना ही मोतियों का हार.........
बस मांग में सिंदूर और,
माथे पर लाल टीका सजाती है.........
निपटा के घर का,
निकल पड़ती वो अपने काम.........
पुरा दिन मेहनत मजदूरी कर के,
अपने परिवार का पेट वो भरती है........
क्या है "what's up",
क्या होता "Facebook"........
इन्हें तो बस अपने,
बच्चें और परिवार की चिंता रहती है.........
जिस घर हो ऐसी नारी,
उस घर नारी की महानता नजर आती है........
नमन है मेरा ऐसी महिलाओं को,
जो खुद को आदमी से कम नहीं समझती है........
प्रभात........
पसीना झलकता है........
कुछ ऐसी भी औरतें हैं,
जिन्हें आराम नहीं मिलता है........
सुबह होती है इनकी,
बिना आलाम के ही.........
चूल्हे चौके से दिन की,
शुरुआत इनकी होती है.........
ना ही कोई सिंगार,
ना ही मोतियों का हार.........
बस मांग में सिंदूर और,
माथे पर लाल टीका सजाती है.........
निपटा के घर का,
निकल पड़ती वो अपने काम.........
पुरा दिन मेहनत मजदूरी कर के,
अपने परिवार का पेट वो भरती है........
क्या है "what's up",
क्या होता "Facebook"........
इन्हें तो बस अपने,
बच्चें और परिवार की चिंता रहती है.........
जिस घर हो ऐसी नारी,
उस घर नारी की महानता नजर आती है........
नमन है मेरा ऐसी महिलाओं को,
जो खुद को आदमी से कम नहीं समझती है........
प्रभात........
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