शराब की हर एक घूंट में....….!! Hindi drank poem
शराब की हर एक घूंट में,
अपनी जिंदगी को पी रहा हूं......
अपने ही हाथों यारों मैं,
अपना संसार उजाड़ रहा हूं.....
कभी मिलती थी जो,
इज्ज़त मुझे अपनों से.....
आज मैं उनकी ही,
नज़रों से गीर रहा हूं......
बनाया था जो आसियां,
तिनका तिनका जोड़ के.....
उसे ही आज मैं,
अपने हाथों उजाड़ रहा हूं.....
जिसे मैं लाया था,
अपनी अर्धांगिनी बना के....
उसे ही आज मैं,
ख़ून के आंसू रुला रहा हूं....
सात फेरों के सात वचन,
निभानें का जो वादा किया....
उन सारे वादों को,
मैं आज तोड़ रहा हूं....
कभी चहक उठते थे बच्चे,
मेरे घर आने पर.....
आब घर आते ही,
उनके चेहरे पर डर देख रहा हूं.....
कभी खुशियों से रोशन था,
मेरा भी घर-बार यारों.....
आज एक खुशी के लिए तरसता,
मेरा परिवार देख रहा हूं.....
शराब की हर एक घूंट में,
अपनी जिंदगी को पी रहा हूं......
अपने ही हाथों मैं यारों,
अपना संसार उजाड़ रहा हूं.....
प्रभात.......
अपनी जिंदगी को पी रहा हूं......
अपने ही हाथों यारों मैं,
अपना संसार उजाड़ रहा हूं.....
कभी मिलती थी जो,
इज्ज़त मुझे अपनों से.....
आज मैं उनकी ही,
नज़रों से गीर रहा हूं......
बनाया था जो आसियां,
तिनका तिनका जोड़ के.....
उसे ही आज मैं,
अपने हाथों उजाड़ रहा हूं.....
जिसे मैं लाया था,
अपनी अर्धांगिनी बना के....
उसे ही आज मैं,
ख़ून के आंसू रुला रहा हूं....
सात फेरों के सात वचन,
निभानें का जो वादा किया....
उन सारे वादों को,
मैं आज तोड़ रहा हूं....
कभी चहक उठते थे बच्चे,
मेरे घर आने पर.....
आब घर आते ही,
उनके चेहरे पर डर देख रहा हूं.....
कभी खुशियों से रोशन था,
मेरा भी घर-बार यारों.....
आज एक खुशी के लिए तरसता,
मेरा परिवार देख रहा हूं.....
शराब की हर एक घूंट में,
अपनी जिंदगी को पी रहा हूं......
अपने ही हाथों मैं यारों,
अपना संसार उजाड़ रहा हूं.....
प्रभात.......
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