Mai hun Tera hi Roop maa... Daughter Hindi poem
दोस्तों जब बेटे की चाह हो और बेटी जन्म लेती है...
तब होता है उसका तिरस्कार,
और फिर उस नन्ही सी जान की आत्मा मां से कहती है....
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जरा हंस के मुझे तू एक बार देख ले....
मैं हूं तेरा ही रूप मां, तू एक बार देख ले....
तेरी काया से ही बनी है, मां ये काया मेरी,
फिर क्यों होता यहां, मेरा तिरस्कार देख ले....
जब उस रब ने ही किसी में, कोई फर्क ना किया,
फिर क्यों होता यहां, बेटे-बेटियों में भेदभाव देख ले....
कोई ख्वाहिश ना तुझसे, ना कभी कोई फरमाइश होगी,
जितना मिलेगा मां, उतने में ही होगी मेरी बसर देख ले....
थोड़े सपने पलकों में सजा के, मैं भी आई हूं यहां,
मिले जो आसमान, फिर तू मेरी उड़ान देख ले....
बस थोड़ा पढ़ लिख लूं, इतनी इजाज़त तू देना मुझे,
एक दिन गर्व से तू कहेगी, ये है बेटी मेरी दुनिया वालों देख ले....
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बेटी को बोझ नहीं लक्ष्मी का रूप समझो....
अगर बेटी की किमत समझनी है तो मां का रूप समझो...
प्रभात.......
तब होता है उसका तिरस्कार,
और फिर उस नन्ही सी जान की आत्मा मां से कहती है....
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जरा हंस के मुझे तू एक बार देख ले....
मैं हूं तेरा ही रूप मां, तू एक बार देख ले....
तेरी काया से ही बनी है, मां ये काया मेरी,
फिर क्यों होता यहां, मेरा तिरस्कार देख ले....
जब उस रब ने ही किसी में, कोई फर्क ना किया,
फिर क्यों होता यहां, बेटे-बेटियों में भेदभाव देख ले....
कोई ख्वाहिश ना तुझसे, ना कभी कोई फरमाइश होगी,
जितना मिलेगा मां, उतने में ही होगी मेरी बसर देख ले....
थोड़े सपने पलकों में सजा के, मैं भी आई हूं यहां,
मिले जो आसमान, फिर तू मेरी उड़ान देख ले....
बस थोड़ा पढ़ लिख लूं, इतनी इजाज़त तू देना मुझे,
एक दिन गर्व से तू कहेगी, ये है बेटी मेरी दुनिया वालों देख ले....
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बेटी को बोझ नहीं लक्ष्मी का रूप समझो....
अगर बेटी की किमत समझनी है तो मां का रूप समझो...
प्रभात.......
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