मैं भी कितनी पगली हूं ...... Hindi love poem....

मैं भी कितनी पगली हूं ना,
बिन जिवन के जीना चाहूं,

                      ओढ़ के चुनरिया धानी,
                      संग सजन के रहना चाहूं,

नगरी अपनी छोड के सारी,
दिल की बस्ती बसाना चाहूं,

                     मैं भी कितनी पगली हूं ना....,

सब रंग छोड के अपने,
पिया के रंग में रंगना चाहूं,

                    नींदया अपनी छोड के,
                    उनके ख्वाबों में बसना चाहूं,

दिल में उनकी चाहत के अरमा लिए,
उनकी रूह में बसना चाहूं,

                    मैं भी कितनी पगली हूं ना,

दु:ख दर्द सारे भूल के अपने,
उनके साथ खुश रहना चाहूं,

                    छोड बाबूल का अंगना अब,
                    मैं सजन घर जाना चाहूं,

कब ले जा ओगे मुझे डोली में तुम,
के अर्धांगिनी अब मैं तुम्हारी बनना चाहूं,

                    मैं भी कितनी पगली हूं ना....!!
प्रतिभा.......

तेरा मेरा साथ रहे 👫

Comments

  1. जी आप के अल्फ़ाज ला जबाब हैं
    रंगा मैंने भी खुद को
    उनके रंगों से
    छोड़ दिया मेने खुद के रंगों को
    भूल गये दुनिया के रंगों को
    क्या करना था मुझें गैरों के रंगों का
    क्या करना था मुझे गैरों को दिखाकर
    बस उनको पसन्द आना चाहे
    हमारे रंग तो उनमें बस्ते हैं
    हमारी दुनिया तो उनमें बस्ती हैं

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